Lyrics : स्वतंत्रता को सार्थक करने शक्ति का आधार चाहिये , Svantranta ko sarthak karne shakti ka adhar chahiye

Lyrics : स्वतंत्रता को सार्थक करने शक्ति का आधार चाहिये , Svantranta ko sarthak karne shakti ka adhar chahiye

Lyrics : स्वतंत्रता को सार्थक करने शक्ति का आधार चाहिये , Svantranta ko sarthak karne shakti ka adhar chahiye 

स्वतंत्रता को सार्थक करने शक्ति का आधार चाहिये।

स्वर्गगंगा तो अरे भागीरथ यत्नों से भूतल पर आती,

किन्तु शीश पर धारण करने शिवशंकर की शक्ति चाहिये।। 1।।

स्वतंत्रता को …………………

अमृत को भी लज्जित करती, समर्थ होकर प्राकृत वाणी,

उन्मेषित करने सौरभ को, तुलसी की रे भक्ति चाहिये।। 2।।

स्वतंत्रता को …………………

शीष कटाकर देह लड़ी थी, कोंडाणा पर गाज गिरी थी,

कण-कण में चेतनता भरने, छत्रपति की स्फूर्ति चाहिये।। 3।।

स्वतंत्रता को …………………

हिमगिरी शिखरों के कंदर में, घुसे पड़े जो नाग भूमि में,

उन सर्पो का मर्दन करने, कालियांत की नीति चाहिये।। 4।।

स्वतंत्रता को …………………

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