कोई दीवाना कहता है" प्रसिद्ध कवि डॉ. कुमार विश्वास की एक लोकप्रिय रचना है
कोई दीवाना कहता है — डॉ. कुमार विश्वास
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है,
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है।
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है,
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है।
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है,
कभी कबीर दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है।
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आँखों में आँसू हैं,
जो तू समझे तो मोती है, जो न समझे तो पानी है।
समंदर पीर का अंदर है, लेकिन रो नहीं सकता,
ये आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नहीं सकता।
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले,
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता।
भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई ख़्वाब पल बैठा तो हंगामा।
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का,
मैं क़िस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हंगामा।
यह कविता मंचीय प्रस्तुति के रूप में डॉ. कुमार विश्वास द्वारा बार-बार प्रस्तुत की गई है और उन्होंने इसमें कभी-कभी थोड़ा बहुत फेरबदल भी किया है।
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